योग विभाग

योग शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए विश्व की प्राचीनतम प्रणाली है। शताब्दियों से भारत में योगियों, ट्टषियों एवं मनीषियों द्वारा योग का अभ्यास किया गया है। जिसके द्वारा जीवन के परम लक्ष्य कैवल्य ;मोक्षद्ध को प्राप्त किया जाता है। योगविद्या से मानसिक शान्ति एवं शारीरिक संतुलन का दिव्य प्रभाव बना रहता है, इससे मेरुदण्ड में लचीलापन एवं स्नायुतन्त्रा में निरन्तर बृद्धि होने लगती है, इससे शनैः-2 मूलाधरादि षट्चक्रभेदन भी होने लगता है। योगासन क्रिया अन्य व्यायामादि क्रियाओं से निरन्तर भिन्न है। क्यों कि योगक्रियाओं में श्वास-प्रणाली को केन्द्रित कर योगाभ्यास किया जाता है।

मानव, योग प्रणाली द्वारा अपने खोये हुए स्वास्थ्य को पुनः प्राप्त कर सकता है, यह प्रणाली मानसिक शान्ति को जन्म देती है, तथा आत्मतत्त्व में गुप्तशक्तियाँ उद्घाटित करती है, साथ ही अपने संकल्पशक्ति में प्रचुर बृद्धि करती है, एवं जीवन के सभी क्षेत्रों में सपफलता प्राप्त होती है मानव इस प्रणाली द्वारा आत्म साक्षात्कार के उत्कृष्ट शिखर पर आसीन हो सकता है। अर्थात् आत्मस्वरूप को पहचानने में सक्षम हो जाता है। लिखा है- तदा द्रष्टुः स्वरूपे{वस्थानम्

योगक्रिया आसन, मन एवं शरीर के सूक्ष्म सम्बन्ध् के पूर्णज्ञान पर आधरित एक अद्भुत मनःशारीरिक प्रणाली है, अन्य सभी योग-कर्मयोग, राजयोग, भक्तियोग एवं ज्ञानयोग आदि की सि(ियों के लिए यह एक साध्न प्रक्रिया है।

भगवान् हिरण्यगर्भ को ही योग का प्रथम उपदेष्टा माना गया है, हिरण्यगर्भो योगस्य वक्ता नान्यः पुरातनः परन्तु इसे सूत्रारूप में परिणत करने वाले महर्षि पत×जलि का नाम योगदर्शन में अग्रणी रूप से स्वीकार किया गया है। योग को समाधि के अर्थ में स्वीकार करते हुए ‘‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोध्ः’‘ इत्यादि सूत्रों से शास्त्रा का प्रतिपादन एवं प्रारम्भ किया गया है, जिसका सम्पूर्ण योगशास्त्रा में उल्लेख है। योगदर्शन में मुख्य रूप से अष्टांगयोग का उल्लेख माना जाता है, जिसमें योग के आठ अंगोें का विस्तार से उल्लेख किया गया है, तथा अष्टम सोपान जो समाधि है, उसे भी दो भेदों में गूढतम रहस्यों द्वारा प्रतिपादन किया गया है, अन्त में योग का पफल मोक्ष को भी प्रमाणपूर्वक सि( किया गया है। कहा गया है ;जीवन ही योग है, योग ही मोक्ष है।

विश्विद्यालय ने 2011-12 सत्रा में योग विज्ञान केन्द्र की स्थापना की है, जिसमें षाण्मासिक एवं एक वर्षीय स्नात्तकोत्तर योग पाठ्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं। अभी तक लगभग 1000 ;एक हजारद्ध छात्रा एवं छात्राओं ने सपफलतापूर्वक योग विद्या अर्जित की जो देश एवं विदेशों में सेवा कर रहे हैं।

वर्तमान में मानव जीवन में मानसिक, शारीरिक आध्व्यिाध्यिों को देखते हुए तथा योगविद्या का अनुकूल व्यावहारिक पक्ष स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में योग विभागों की स्थापना की है उसी क्रम में केन्द्रस्थ श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्विद्यालय नई दिल्ली में भी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा योग विभाग एक स्वतंत्रा विभाग के रूप में स्थापित हुआ है।

वर्तमान सत्रा 2018-19 में बी.ए. योग कक्षा हेतु 50 स्थान निश्चित किये गये है तथा एम.ए. कक्षा हेतु 100 स्थान निश्चित है जिसमें छात्रा छात्राऐं अध्ययन कर रहे हैं विभाग में निम्नलिखित पाठ्यक्रमों का भी अध्ययन कराया जा रहा है।

विभाग के अन्तर्गत योग अध्ययन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा ;एक वर्षीयद्ध ;च्ण्ळण्क्पचसवउं पद ल्वहं ैजनकपमेद्ध ;व्दम लमंतद्ध हेतु 150 स्थान निश्चित किये है तथा प्रमाणपत्राीय पाठ्यक्रम ;षाण्मासिकद्ध ;ब्ंतजपपिबंजमे ब्वनतेम पद ल्वहंद्ध ;ैपग उवदजीद्ध हेतु 50 स्थान निश्चित किये है। एक माह एवं तीन माह का योग पाठ्यक्रम भी संचालित करने की अनुमति प्राप्त हुई है।

योग पाठ्यक्रमों में निम्नलिखित विषयों का अध्ययन कराया जा रहा है।

योग के आधरभूत सिद्धांत, मानव चेतना विज्ञान, श्रीमद्भवद्गीता, सांख्यदर्शन, शरीर विज्ञान, योग मनोविज्ञान, पात×जल योग सूत्रा, योग के शिक्षण सिद्धांत, शोध् प्रविध्,ि सांख्यकी, यौगिक चिकित्सा, उपनिषद्, भारतीय दर्शन, प्राकृतिक चिकित्सा, मर्म चिकित्सा, योग कौशल विकास, कम्प्यूटर आदि।

योग प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से प्रतिदिन कराया जाता है।

अध्ययन सामग्री / संदर्भ

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संकाय विवरण

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क्रमांक फ़ोटो नाम विभाग पद
1 रमेश कुमार डॉ रमेश कुमार योग विभाग असिस्टेंट प्रोफेसर
2 विजय सिंह गुसाईं डॉ विजय सिंह गुसाईं योग विभाग असिस्टेंट प्रोफेसर
3 नवदीप जोशी डॉ नवदीप जोशी योग विभाग असिस्टेंट प्रोफेसर