वास्तुशास्त्र विभाग

भारतीय वास्तुशास्त्र समग्र निर्माण (भवन आदि का) विधि एवं प्रक्रिया प्रतिपादक शास्त्र है। इस शास्त्र की उत्पत्ति स्थापत्यवेद से हुई है, जो अथर्ववेद के उपवेद के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थापत्य विज्ञान है, जो प्रकृति के पाँच मूलभूत तत्त्वों (पृथिवी, जल, तेज, वायु एवं आकाश) का संयोजन करती है तथा उनका मनुष्य एवं पदार्थों के साथ सामञ्जस्य स्थापित करती है। यह वास्तु सम्मत भवनों में रहने वाले प्राणियों के स्वास्थ्य, धन-धान्य, प्रसन्नता एवं समृद्धि के लिए कार्य करती है। ऋग्वेद की एक ऋचा में वैदिक-ऋषि वास्तोष्पति से अपने संरक्षण में रखने तथा समृद्धि से रहने का आशीर्वाद प्रदान करने हेतु प्रार्थना करता है। ऋषि अपने द्विपदों (मनुष्यों) तथा चतुष्पदों (पशुओं) के लिए भी वास्तोष्पति से कल्याणकारी आशीर्वाद की कामना करता है। यथा -
वास्तोष्पते प्रति जानीह्यस्मान्त्स्वावेशो अनमीवो भवा नः ।
यत् त्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ।। ऋग्वेद - 7/54/1

ज्योतिष शास्त्र के संहिता भाग में सर्वाधिक रूप से वास्तुविद्या का वर्णन उपलब्ध होता है । ज्योतिष के विचारणीय पक्ष दिग्-देश-काल के कारण ही वास्तु ज्योतिष के संहिता भाग में समाहित हुआ । वैदिक काल से ही ज्योतिष शास्त्र मानव जीवन के विविध पक्षों का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विचार करता आ रहा है ।कई वर्षों से हमारे आचार्य इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार भृगु, अत्रि, वसिष्ठ आदि ऋषियों ने वास्तुशास्त्र की विस्तृत व्याख्या करके उच्च कीर्तिमान स्थापित किये हैं । इनमें विश्वकर्मा एवं मय वास्तुशास्त्र के सुविख्यात आचार्य रहे हैं । ये दोनों वास्तुशास्त्र के समकालीन प्रतिद्वन्द्वी माने जाते हैं । विश्वकर्मा एवं मय के अनुयायियों ने भवननिर्माण के अनेकों नियमों की व्याख्या वास्तुशास्त्र के मानक ग्रन्थों में की है। इन ग्रन्थों में वास्तुशास्त्र के उद्देश्यों एवं आवश्यकता पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है ।

इस विभाग की स्थापना ज्योतिषविभाग के अविभाज्य अंग (ज्योतिष विभाग के अन्तः सम्बन्धित विभाग) के रूप में की गई थी। वास्तुशास्त्र विभाग में शास्त्री, आचार्य, विशिष्टाचार्य एवं विद्यावारिधि की कक्षाओं में प्रवेश सन् 2013 से ही प्रारम्भ हो चुका है । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशा निर्देशानुसार जनसामान्य की वास्तुशास्त्र में अभिरुचि को देखते हुए वास्तुशास्त्र में वास्तुशास्त्रीय पी.जी. डिप्लोमा पाठ्यक्रम, षाण्मासिक प्रमाण पत्रीय पाठ्यक्रम, एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम तथा द्विवर्षीय वास्तुशास्त्र एडवांस डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलाये जा रहे हैं । इन पाठ्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य वास्तुशास्त्र के दुर्लभ शास्त्रीय ज्ञान के प्रति सामान्य जनता में जागरूकता प्रसारित करना है ।

वास्तुशास्त्र विभाग वास्तुशास्त्रविमर्श नामक वार्षिक शोधपत्रिका का प्रकाशन करता है। हम अपने छात्रों के ज्ञानवर्धन हेतु प्रति वर्ष विशिष्ट व्याख्यानमाला का आयोजन भी करते है। वास्तुशास्त्र विभाग रोजगारपरक शिक्षा प्रदान करने हेतु प्रतिवद्ध है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के आधुनिक युग में, प्राचीन वास्तुशास्त्र को भी आधुनिक वास्तुकला के साथ साथ चलना चाहिए। इसी उद्देश्य से वास्तुशास्त्र विभाग ने “योजना एवं वास्तुकला विद्यालय, नई दिल्ली”(school of planning and architecture, New Delhi) के साथ परस्पर सहयोग सहमति पत्र (memorandum of understanding) 18 अक्तूबर, 2018 को हस्ताक्षरित किया है। जिससे विभाग के छात्र प्राचीन वास्तुशास्त्र के साथ आधुनिक वास्तुविद्या में भी निष्णात हो रहे हैं। वास्तुशास्त्रविभाग ने योजना एवं वास्तुकला विद्यालय, नई दिल्ली के साथ संयुक्त तत्त्वावधान में 'भारतीयवास्तुशास्त्रम् आधुनिककलासहितञ्च' नामक दो कार्यशालाओं का सफल आयोजन भी किया है।

वास्तुशास्त्र विभाग में कुल सात (7) पद स्वीकृत हैं, जिनमें एक(1) पद- आचार्य, एक पद(1) सहाचार्य तथा पाँच (5) पद सहायकाचार्य के हैं। इस समय इन पदों में से छह (6) पद पूरित हैं। विभाग के आचार्य एवं पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. देवीप्रसाद त्रिपाठी जी वर्तमान में धारणाधिकार में उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार में कुलपति पद को अलंकृत कर रहे हैं, जो विभाग के लिए अत्यन्त गौरव का विषय है। हमारे प्राध्यापक अत्यन्त परिश्रमी, विषयमर्मज्ञ, छात्रहितैषी तथा कर्तव्यपालन में दक्ष हैं। विभागीय कार्यों के निर्वहण के साथ ही वे अनेकों सम्मेलनों, संगोष्ठियों, कार्यशालाओं , विशिष्ट व्याख्यानों, रेडियो -टी.वी. वार्ताओं इत्यादि में भाग ग्रहण कर तथा ऑन लाइन पाठ्यक्रम का संयोजन, ई- पाठ लेखन, रिकार्डिंग, पुस्तकलेखन, शोधपत्रलेखन आदि के द्वारा विभाग व विश्वविद्यालय को गौरवान्वित कर चुके हैं। जिस कारण अनेकों सम्मानों व पुरस्कारों से उनको सम्मानित किया जा चुका है।

वास्तुशास्त्र विभाग के कई छात्र यू.जी.सी. द्वारा आयोजित कनिष्ठ शोध अध्येता वृत्ति तथा राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा, शिक्षाशास्त्र प्रवेश परीक्षा, विद्यावारिधि प्रवेश परीक्षा आदि में सफलता प्राप्त कर चुके हैं। विभाग में अध्ययन किये हुए अनेक छात्र रक्षासेवा, माध्यमिक शिक्षा सेवा, विश्वविद्यालयीय सेवा, निजी विद्यालय, स्वरोजगार आदि में आजीविका प्राप्त कर चुके हैं। इस प्रकार अल्प कालावधि में विभाग ने परिश्रमपूर्वक नई ऊँचाईयों को स्पर्श किया है। सम्प्रति विभाग के अन्तर्गत वास्तुशास्त्र के उपविषयों जैसे शिल्पशास्त्र (मूर्तिनिर्माणादि), चित्रालेखनशास्त्र (चित्र-मानचित्रादिकला) आदि का समायोजन आवश्यक है। इसके साथ ही वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों को आधुनिक विज्ञान के साथ अध्ययन-अध्यापन के लिए विभाग में वास्तुकलाविद (आर्किटेक्ट), गृहसज्जाविद (इन्टीरियर), आधुनिक सूत्रग्राही (ड्राप्टमैन) की भी आवश्यकता है। तत्पश्चात् ही वास्तुशास्त्रविभाग अपने पूर्ण स्वरूप को प्राप्त करेगा। जिससे छात्र विषय-विशेषज्ञता की ओर अधिक स्पष्टता एवं गम्भीरता के साथ अग्रसर होते हुए भारताय ज्ञान विज्ञान के वैशिष्ट्य से सभी को उपकृत कर सकेंगे। आशा है कि वास्तुशास्त्रविभाग इसी प्रकार अपने में समयानुकूल परिवर्तन एवं परिवर्धन करता हुआ शास्त्रसंरक्षण व जनकल्याण की उदात्त भावना को परिपुष्ट करता रहेगा।

अध्ययन सामग्री / संदर्भ

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संकाय विवरण

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क्रमांक फ़ोटो नाम विभाग पद
1 देवी प्रसाद त्रिपाठी प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी वास्तुशास्त्र विभाग प्रोफेसर
2 प्रवेश व्यास डॉ प्रवेश व्यास वास्तुशास्त्र विभाग असिस्टेंट प्रोफेसर
3 अशोक थपलियाल डॉ अशोक थपलियाल वास्तुशास्त्र विभाग प्रोफेसर
4 देश बन्धु डॉ देश बन्धु वास्तुशास्त्र विभाग असिस्टेंट प्रोफेसर
5 योगेन्द्र कुमार शर्मा डॉ योगेन्द्र कुमार शर्मा वास्तुशास्त्र विभाग असिस्टेंट प्रोफेसर
6 दीपक वशिष्ठ डॉ दीपक वशिष्ठ वास्तुशास्त्र विभाग असिस्टेंट प्रोफेसर
7 नवीन पांडे डॉ नवीन पांडे वास्तुशास्त्र विभाग असिस्टेंट प्रोफेसर