प्राकृत विभाग द्वारा आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

  • संगोष्ठी- प्रतिवेदन
    19-20 दिसम्बर, 2022

    आयोजक - प्राकृतभाषा विभाग
    विषय - विगत 150 वर्षो में प्राकृत भाषा और साहित्य के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी

    संगोष्ठी- निदेशक - प्रो. सुदीप कुमार जैन

    संगोष्ठी-संयोजिका : प्रो. कल्पना जैन

    संगोष्ठी-स्थल : ‘वाचस्पति सभागार’, सारस्वत-साधना-सदन, विश्वविद्यालय

    उद्घाटन-सत्र
    इस सत्र का शुभारम्भ 19 दिसम्बर 2022 को प्रातकाल: 10:30 बजे प्रारम्भ हुआ । इस सत्र की अध्यक्षता माननीय कुलपति प्रो. मुरली मनोहर पाठक द्वारा की गयी । इस सत्र का स्वागत-भाषण एवं संयोजन प्राकृतभाषा-विभाग की अध्यक्षा प्रो. कल्पना जैन द्वारा दिया गया । इस सत्र का विषय प्रवर्तन प्राकृतभाषा-विभाग के वरिष्ठ -आचार्य प्रो. सुदीप कुमार जैन द्वारा किया गया । इस सत्र में सारस्वत-अतिथि के रूप में प्रो. शीतला प्रसाद शुक्ल ने मंगल कामनाएं व्यक्त की । और धन्यवाद ज्ञापन साहित्य-विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. धर्मानंद राउत द्वारा किया गया ।
    द्वितीय-सत्र
    इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. जयकुमार उपाध्ये (श्रवणबेलगोला) ने की । इस सत्र के सारस्वत-अतिथि प्रो. प्रेम सुमन जैन, उदयपुर रहे । इस सत्र का सञ्चालन डॉ. पुलक गोयल जबलपुर द्वारा किया गय । |इस सत्र में निम्लिखित विद्वानों ने पत्र प्रस्तुत किये-
    I. प्रो. प्रेम सुमन जैन (उदयपुर):- विदेशी-विद्वानों द्वारा विगत 50 वर्षो में प्राकृत अध्ययन ।
    II. डॉ. वंदना मेहता (बैंगलोर):- राजस्थान, गुजरात एवं महाराष्ट्र में जैन-संघों (साधुओं एवं मुनि, विद्वानों) द्वारा प्राकृतभाषा और साहित्य के विकास का आकलन ।
    III. डॉ. तारा डागा (जयपुर) :- राजस्थान के गैर-सरकारी संस्थानों द्वारा प्राकृतभाषा और साहित्य के क्षेत्र में योगदान : एक आकलन ।
    IV. डॉ. सुदर्शन मिश्र (बिहार) :- बिहार प्रान्त में प्राकृतभाषा का अतीत एवं वर्तमान : एक अध्ययन ।

    तृतीय-सत्र:
    इस सत्र की अध्यक्षता जैन दर्शन विभाग के प्रो. वीरसागर जैन ने की । इस सत्र में सारस्वत-अतिथि के रूप में डाँ. जयकुमार जैन (मुजफ्फरनगर) उपस्थिति रहे है । इस सत्र के सयोंजिका डॉ. पत्रिका जैन, लखनऊ रही । इस सत्र में निम्लिखित विद्वानों ने पत्र प्रस्तुत किये-
    I. डॉ. दीना नाथ शर्मा (अहमदाबाद):- गुजरात में प्राकृतभाषा और साहित्य का योगदान ।
    II. डॉ. जयकुमार जैन (मुजफ्फरनगर) :- भारत में प्राकृत-वांग्मय पर भावी शोधकार्यो की दिशाओं का आकलन ।
    III. प्रो. जयकुमार उपाध्ये (श्रवणबेलगोला) :- कर्नाटक में प्राकृत-अध्धयन का विगत १५० वर्षो का आकलन ।
    IV. डॉ. राका जैन (लखनऊ) :- प्राकृत भाषा के सुभाषित-साहित्य पर अद्यावधि सम्पन्न कार्य ।
    V. श्री रूपम दास (दिल्ली): सम्राट अशोक के अन्य विविध प्रकीर्णक-लेखों की वर्तमान सन्दर्भ में उपयोगिता ।

    चतुर्थ-सत्र
    इस सत्र की अध्यक्षता केन्द्रीय संस्कृत संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. विजय कुमार जैन, लखनऊ ने की । इस सत्र में सारस्वत-अतिथि के रूप में प्रो. प्रियदर्शना जैन, चेन्नई से उपस्थिति रही । इस सत्र की संयोजिका श्रीमती मिथलेश जैन रही । इस सत्र में निम्लिखित विद्वानों ने पत्र प्रस्तुत किये -
    I. प्रियदर्शना जैन (चेन्नई) :- प्राकृत अध्ययन एवं अनुसंधान के क्षेत्र में आनेवाली व्यवहारिक-समस्याएँ उनके समाधान ।
    II. प्रो. कल्पना जैन (दिल्ली) :- प्राकृत अध्ययन एवं अनुसन्धान के महिलाओं का योगदान
    III. डॉ. सुमत कुमार जैन (उदयपुर) :- प्राकृत भाषा और साहित्य के विभागों का इतिवृत्तात्मक आकलन ।
    IV. डॉ. पत्रिका जैन (लखनऊ) :- प्राकृत कोश ग्रंथों पर विगत 150 वर्षो में हुए कार्यों का आकलन
    V. डॉ. दिनेश (दिल्ली) :- महाकवि भास के नाटकों की प्राकृतभाषा पर विगत 150 वर्षों में सम्पन्न-कार्य ।
    पंचम-सत्र
    इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. धर्म चन्द्र जैन (मुरादाबाद) द्वारा की गयी । इस सत्र की सारस्वत अतिथि डॉ. रंजना जैन रही । इस सत्र का सञ्चालन श्री मनोज कुमार जैन (अलीगढ़)ने किया । इस सत्र में निम्लिखित-विद्वानों ने पत्र प्रस्तुत किये-
    I. प्रो. अनेकांत कुमार जैन ( दिल्ली) :- प्राकृत-पत्रकारिता पर विगत 150 में हुए कार्यों का आकलन ।
    II. डॉ. रंजना जैन (दिल्ली) :- प्राकृत नाट्य-परम्पराओं में जैनाचार्यो के अवदान का आकलन ।
    III. डॉ. संगीता मेहता (इन्दौर) :- आधुनिक जैन-संतो द्वारा किये गए प्राकृत-कार्यो का आकलन ।
    IV. डॉ. पुलक गोयल(जबलपुर):- आभासी-मंच के विविध-स्रोतों पर उपलब्ध प्राकृतभाषा एवं साहित्य की सूचना-सामग्री का आकलन ।
    V. डॉ. महावीर शास्त्री (सोलापुर) :- महराष्ट्र में प्राकृत भाषा और साहित्य में किये गए कार्यो का आकलन ।

    षष्ठ-सत्र
    इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. बलराम शुक्ल (दिल्ली विश्वविद्यालय) द्वारा की गयी । इस सत्र में सारस्वत-अतिथि डाँ. अनुपम जैन जी थे । इस सत्र का संयोजन डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, इलाहाबाद ने किया । इस सत्र में प्रमुख निम्लिखित-विद्वानों ने पत्र प्रस्तुत किये -
    I. प्रो. सुदीप जैन (दिल्ली) :- श्री.ल.ब.शा.रा.संस्कृत विश्व विद्यालय में नई दिल्ली में प्राकृतभाषा विभाग की स्थापना एवं अद्यावधि-प्रगति का आकलन ।
    II. डॉ. सुमन कुमार झा (दिल्ली):- प्राकृत एवं साहित्य के अनुसन्धान के क्षेत्र में नवीन-सम्भावनायें ।
    III. प्रो. विजय कुमार जैन (लखनऊ) :- प्राकृत एवं पालिभाषाओं के साहित्य पर विगत 150 वर्षों में सम्पन्न कार्यों का आकलन ।
    IV. श्री आकाश (दिल्ली) :- प्राकृतभाषा और संचार-प्रौद्योगिकी ।
    सप्तम-सत्र
    इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. सुदीप कुमार जैन द्वारा की गयी । इस सत्र के सारस्वत-अतिथि डॉ. श्रीयांश कुमार सिंघई रहे । इस सत्र का सञ्चालन श्री रूपम दास ने किया । इस सत्र में निम्लिखित-विद्वानों ने पत्र प्रस्तुत किये-
    I. डॉ. श्रीयांश कुमार सिंघई: प्राकृत दार्शनिक वाङ्मय के प्रतिनिधि-ग्रन्थ ‘पवयणसारो’ का वैशिष्ट्य ।
    II. प्रो. धर्म चन्द्र जैन :- विगत शताब्दी में प्राकृतभाषा के अध्धयन-हेतु विद्वानों के प्रयत्न ।
    III. डॉ. राघवेन्द्र मिश्र , इलाहाबाद :- प्राकृत-ग्रंथों में काम की अवधारणा ।
    IV. श्रीमती मिथिलेश जैन -प्राकृत वाङ्मय में मणि-रत्नों के परीक्षण एवं प्रभाव-संबंधित साहित्य का परिचय एवं वैशिष्ट्य ।
    V. श्री मनोज कुमार जैन , अलीगढ़ ओर शौरसेनी-प्राकृत और उससे समृद्ध जैन-साहित्य ।
    VI. श्री मनोज राय - सरस्वतीकण्ठाभरणालोके संस्कृतग्रन्थेषु आगतानाम् प्राकृतपद्यानां वैशिष्ट्यम् ।
    VII. श्री नीरज कुमार - प्राकृत कथा साहित्य पर अद्यावधि किए गए कार्यों का आकलन ।
    समापन सत्र
    इस सत्र में विशिष्ट-अतिथि के रूप में प्रो. प्रेमसुमन जैन उपस्थित रहे । संगोष्ठी का प्रतिवेदन एवं प्रस्ताव प्रो. सुदीप कुमार जैन द्वारा किया गया है । धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्याक्षा प्रो.कल्पना जैन के द्वारा किया गया । इस सत्र का संयोजन प्रो. सुदीप कुमार जैन द्वारा किया गया ।